अनन्य प्रेम” का अर्थ है – ऐसा प्रेम जिसमें किसी प्रकार की द्वैत भावना, अपेक्षा, स्वार्थ या प्रतिस्पर्धा का लेशमात्र भी न हो। यह प्रेम…
शुद्ध राधा प्रेम की चरम अवस्था – निःस्वार्थ समर्पण “आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टु माम्…”यह श्लोक श्रीमन्महाप्रभु की शिक्षाष्टकम् का अंतिम और सबसे गंभीर भाव का…
“युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावृषायितम्।शून्यायितं जगत् सर्वं गोविन्द विरहेण मे।।”(श्री शिक्षाष्टकम् – ७) श्रीगौरांग महाप्रभु का यह विलक्षण भावोद्गार हृदय को स्पर्श कर जाता है। महाप्रभु…
श्रीमन्महाप्रभु के श्लोक “नयनं गलदश्रुधारया…” के माध्यम से जानिए उत्कंठा और भावयुक्त भजन का महत्व। कैसे एक साधक की व्याकुलता ही उसे भगवान के निकट…
श्रीचैतन्य महाप्रभु की करुणामयी प्रार्थना — “अयि नन्दतनुज किंकरं पतितं मां…” — जीव की विषम भवसागर से मुक्ति की पुकार है। इस लेख में जानिए,…
**न धनं न जनं न सुन्दरीं, कवितां वा जगदीश कामये।मम जन्मनि जन्मनीश्वरे, भवताद् भक्तिरहैतुकी त्वयि।। — श्रीमन्महाप्रभु** श्रीचैतन्य महाप्रभु की यह प्रार्थना भक्ति की पराकाष्ठा…
श्रीचैतन्य महाप्रभु द्वारा प्रदत्त तृणादपि सुनीचेन श्लोक की विस्तृत व्याख्या, जिसमें विनम्रता, सहनशीलता, और सच्ची भक्ति का रहस्य समाहित है। जानिए कैसे यह श्लोक नाम-साधना…
श्रीशिक्षाष्टकम् की सातवीं श्लोक की गहराई और गंभीरता को बहुत सुंदर ढंग से स्पष्ट करता है।श्लोक है— “दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नानुरागः”— यह शोक और आत्मनिंदा का भाव…
गौर प्रिय दास | श्रीमद्भागवत कथा वक्ता | कृष्णकथा और चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाएं | Vrindavan Bhakti Speaker गौर प्रिय दास के बारे में गौर…
अभिमान और स्वाभिमान का वैष्णव विवेचन | दैन्यता का भाव | श्रीकृष्ण के सेवक का आत्मनिरीक्षण अभिमान या स्वाभिमान अधिकतर अभिमान और स्वाभिमान की बात…