रूप गोस्वामी द्वारा श्री गोविन्द देव जी की प्रकट कथा अत्यंत प्रेरणादायक और अद्भुत है, जो भक्तों के प्रेम, साधना, और भगवान की कृपा का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती है। श्री रूप गोस्वामी जी चैतन्य महाप्रभु के परम शिष्य और अष्ट गोस्वामियों में प्रमुख माने जाते हैं। उनके द्वारा गोविन्द देव जी की प्रकट कथा इस प्रकार है:
प्रकट कथा:
रूप गोस्वामी जी श्री चैतन्य महाप्रभु के निर्देशानुसार वृन्दावन आए थे, जहाँ उन्हें भक्तों के लिए भगवान की लीलाओं के स्थलों को पुनः खोजने और उनके मंदिर निर्माण का कार्य सौंपा गया था। वृन्दावन में साधना करते हुए और ध्यान मग्न अवस्था में रूप गोस्वामी जी ने एक दिन दिव्य स्वप्न देखा। स्वप्न में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण (गोविन्द जी) ने उन्हें दर्शन दिए और कहा:
“हे रूप! मैं यमुना के तट पर गोपीनाथ घाट के निकट भूमि में एक विग्रह रूप में विद्यमान हूँ। मेरे पास एक गाय प्रतिदिन आती है और मुझे अपने दूध से स्नान कराती है। तुम मुझे खोजकर इस दुनिया में पुनः प्रकट करो।”
स्वप्न के इस दिव्य अनुभव के पश्चात रूप गोस्वामी जी ने तुरंत ही इस निर्देश का पालन करने का निर्णय लिया और गोपीनाथ घाट के निकट उस स्थान पर पहुँच गए। वहाँ उन्होंने देखा कि वास्तव में एक गोपालिनी गाय प्रतिदिन उसी स्थान पर आकर दूध गिराती है, जहाँ श्री गोविन्द देव जी की मूर्ति भूमि के अंदर छुपी हुई थी।
श्री गोविन्द देव जी का प्रकट होना:
रूप गोस्वामी जी ने उस स्थान पर खुदाई प्रारंभ की और कुछ ही समय में भगवान श्री गोविन्द देव जी की अद्भुत एवं मनोहारी मूर्ति प्रकट हो गई। यह विग्रह अत्यंत आकर्षक और भक्तों के हृदय को मंत्रमुग्ध करने वाला था। जैसे ही गोविन्द देव जी का विग्रह प्रकट हुआ, वहाँ उपस्थित भक्तों के बीच आनंद और उल्लास की लहर दौड़ गई।
इस अद्भुत घटना के पश्चात, रूप गोस्वामी जी ने तत्काल गोविन्द जी के मंदिर का निर्माण करने का संकल्प लिया। उस समय के आमेर (जयपुर) के राजा, भगवान के अनन्य भक्त, राजा मानसिंह ने इस मंदिर के निर्माण का कार्य करवाया, जो उस काल के सबसे भव्य और उच्चकोटि के स्थापत्य कला का उदाहरण माना जाता था।
भक्ति और साधना का महत्व:
रूप गोस्वामी जी ने श्री गोविन्द देव जी की सेवा और पूजा को सर्वोपरि रखा और इस प्रकार वे अपनी साधना और तप के माध्यम से भगवान को प्रकट करने में सफल हुए। यह कथा यह भी सिखाती है कि जब भक्ति सच्ची होती है और मन पूर्णतः भगवान की ओर समर्पित होता है, तो स्वयं भगवान भक्तों के प्रेम और पुकार को स्वीकार कर प्रकट हो जाते हैं।
गोविन्द जी का वर्तमान मंदिर:
श्री गोविन्द देव जी का यह मूल विग्रह मुगलों के आक्रमण के समय वृन्दावन से आमेर (जयपुर) लाया गया, जहाँ अब जयपुर में उनका दिव्य मंदिर स्थित है। जयपुर का गोविन्द जी मंदिर अब भी उसी प्रेम और भक्ति से पूजा जाता है और भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
रूप गोस्वामी जी द्वारा श्री गोविन्द देव जी की प्रकट लीला यह संदेश देती है कि भगवान सदैव अपने भक्तों के प्रेम और भक्ति के वश में रहते हैं और उनके आह्वान को स्वीकार कर प्रकट होते हैं। यह कथा भक्ति, तपस्या, और श्री वृन्दावन धाम की महिमा का सजीव उदाहरण है।
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