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श्री नाभादास जी का वास्तविक स्वरूप (भावनात्मक शैली में)

श्री नाभादास जी का वास्तविक स्वरूप (भावनात्मक शैली में)

जब ब्रह्मा जी ने व्रज के ग्वालों और गौओं का हरण किया,
भगवान श्रीकृष्ण ने बिना किसी शिकायत,
अपनी योगमाया से रच दिया एक नया संसार,
जहां हर ग्वाल, हर बछड़ा फिर से प्रकट हुआ,
परंतु व्रजवासियों को इसका आभास तक न हुआ।

ब्रह्मा जी ने जब प्रभु के आगे झुककर मांगी क्षमा,
तब प्रभु ने कहा, “तुम कलियुग में नेत्रहीन जन्म लोगे।
परंतु चिंता मत करो, महात्माओं की कृपा से,
तुम्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त होगी।”

और इस प्रकार, ब्रह्मा जी ने नाभादास जी का रूप लिया,
नेत्रहीन होते हुए भी, उनके भीतर ज्ञान का प्रकाश था।
पहले पाँच वर्षों तक अंधकार में रहे,
परंतु जब संतों की कृपा उन पर बरसी,
तब उनके नेत्रों ने नहीं, उनकी आत्मा ने संसार को देखा।

नाभादास जी का यह जीवन सरल नहीं था,
परंतु उनकी भक्ति ने उन्हें एक विशेष स्थान दिया।
उन्होंने भक्तमाल रचकर संसार को वह दृष्टि दी,
जो केवल एक संत ही दे सकता है।

उनके इस अद्वितीय ग्रंथ ने शैव और वैष्णव भेद मिटाया,
संतों की सेवा में समर्पण का बीज बोया।
यह ग्रंथ केवल कथा नहीं,
यह तो भक्ति का अमर गीत है,
जो हर साधक के हृदय को छू लेता है,
हर भक्त को ईश्वर के समीप ले आता है।

भक्तमाल का एक-एक शब्द प्रेम से लिखा गया,
संतों और भक्तों की महिमा को सजीव रूप में गढ़ा गया।
इसमें न केवल इतिहास है, बल्कि भक्ति का अमृत है,
जो पीने से आत्मा को शांति मिलती है,
और ईश्वर की ओर खिंचाव बढ़ता है।

श्री नाभादास जी का जीवन एक उदाहरण है,
कैसे एक भक्त ने, अंधकार में भी प्रकाश खोज लिया।
उनकी दृष्टिहीनता केवल बाहरी थी,
भीतर तो वे अनंत ज्ञान और भक्ति के ज्योतिर्मय थे।
उनकी भक्तमाल संतों की महिमा का अद्वितीय स्तोत्र है,
जिसे पढ़कर हृदय प्रेम और भक्ति से भर उठता है।

श्री नाभादास जी ने अपने ग्रंथ से भक्तों को एक अमर धरोहर दी,
जिससे उनकी स्मृति, उनकी साधना,
आज भी हमारे हृदयों में जीवित है।
उनका जीवन यह सिखाता है,
कि भक्ति के मार्ग पर कोई भी बाधा नहीं ठहर सकती,
और ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा,
हर कष्ट को आनंद में बदल देती है।

श्री नाभादास जी का हर शब्द,
हमें उनके सच्चे प्रेम और समर्पण की गहराई में डुबो देता है।
उनका जीवन एक प्रेरणा है,
जो हर भक्त के हृदय में विश्वास और श्रद्धा का दीप जलाता है।

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