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श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा रचित ‘शिक्षाष्टकम’ आठ श्लोकों का संग्रह है

श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा रचित ‘शिक्षाष्टकम’ आठ श्लोकों का संग्रह है, जो भगवत भक्ति और नामस्मरण के महत्व को दर्शाते हैं। इन श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण के नाम की महिमा, भक्ति के लक्षण, और भक्त की भावनाओं का सुंदर वर्णन मिलता है। आइए, प्रत्येक श्लोक का हिंदी अनुवाद और व्याख्या समझते हैं:

श्लोक 1:

चेतो-दर्पण-मार्जनं भव-महा-दावाग्नि-निर्वापणं
श्रेयः-कैरव-चंद्रिका-वितरणं विद्यावधू-जीवनम्
आनंदांबुधि-वर्धनं प्रति-पदं पूर्णामृतास्वादनं
सर्वात्म-स्नपनं परं विजयते श्री-कृष्ण-संकीर्तनम्​The Spiritual Talks+2Vaishnava Gitavali+2जयजय श्रीश्यामाश्याम+2

अनुवाद: श्री कृष्ण के संकीर्तन की महिमा अपरंपार है। यह हृदय के मैल को धोकर शुद्ध करता है, जन्म-मृत्यु के चक्र को समाप्त करता है, चंद्रमा की किरणों के समान शीतलता प्रदान करता है, विद्या की पत्नी के जीवन का संचार करता है, आनंद के समुद्र को बढ़ाता है, हर कदम पर अमृत का स्वाद देता है, और समस्त आत्माओं को पवित्र करता है।​जयजय श्रीश्यामाश्याम+1The Spiritual Talks+1The Spiritual Talks

श्लोक 2:

नाम्नामकारि बहुधा निज सर्व शक्तिस्तत्रार्पिता नियमितः स्मरणे न कालः।
एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नानुरागः॥​जयजय श्रीश्यामाश्याम+1Vaishnava Gitavali+1

अनुवाद: हे भगवान! आपके अनंत नाम हैं, जिनमें आपने अपनी समस्त शक्तियाँ समाहित की हैं। इन नामों का स्मरण करने में कोई काल या नियम बाधक नहीं है। आपकी इस कृपा के बावजूद, मैं जन्मों से इस नाम में अनुराग क्यों नहीं पा सका?​जयजय श्रीश्यामाश्याम

श्लोक 3:

तृणाद् अपि सुनीचेन तरोर् अपि सहिष्णुना।
अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः॥​Vaishnava Gitavali+1जयजय श्रीश्यामाश्याम+1

अनुवाद: हमें अपने को तृण (घास) से भी नीच समझकर, वृक्ष के समान सहनशील और धैर्यवान होना चाहिए, और दूसरों से सम्मान की अपेक्षा न करके, सदैव भगवान हरि का कीर्तन करना चाहिए।​जयजय श्रीश्यामाश्याम

श्लोक 4:

न धनं न जनं न सुन्दरीं कवितां वा जगद्-ईश कामये।
मम जन्मनि जन्मनीश्वरे भवताद् भक्तिर् अहैतुकी त्वयि॥​Vaishnava Gitavali+1जयजय श्रीश्यामाश्याम+1

अनुवाद: हे भगवान! मुझे न धन की इच्छा है, न जनों की, न सुंदरियों की, न ही काव्य रचनाओं की। मेरी केवल एक इच्छा है: जन्म-जन्मांतर तक आपकी निरconditional भक्ति प्राप्त हो।​जयजय श्रीश्यामाश्याम

श्लोक 5:

अयि नन्द-तनुज किंकरं पतितं मां विषमे भावांबुधौ।
कृपया तव पाद-पंकज-स्थित-धूली-सदृशं विचिंतय॥​Vaishnava Gitavali+1जयजय श्रीश्यामाश्याम+1

अनुवाद: हे नंदनंदन! मैं आपका दीन दास हूँ, जो इस विषम संसार के समुद्र में गिर पड़ा है। कृपया मुझे अपने चरणकमलों की धूलि के समान बना लें, ताकि मैं इस संसार सागर से पार हो सकूँ।​जयजय श्रीश्यामाश्याम

श्लोक 6:

नयनं गलद्-अश्रु-धारया वदनं गद्गद- रुद्धयागिरा।
पुलकैर् निचितं वपुः कदा तव नाम-ग्रहणे भविष्यति॥​Vaishnava Gitavali+1जयजय श्रीश्यामाश्याम+1

अनुवाद: हे प्रभु! आपके नाम का कीर्तन करते हुए, कब मेरे नेत्र अश्रुपूरित होंगे, कब मेरा वचन गद्गद होकर रुक जाएगा, और कब मेरे शरीर में रोमांच होगा?​जयजय श्रीश्यामाश्याम

श्लोक 7:

युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावृषायितम्।
शून्यायितं जगत् सर्वं गोविंद-विराहेण मे॥​Vaishnava Gitavali+1जयजय श्रीश्यामाश्याम+1

अनुवाद: हे गोविंद! आपके विरह में, मेरे लिए एक क्षण भी एक युग के समान है, मेरी आँखों से निरंतर अश्रुपात हो रहा है, और समस्त जगत मेरे लिए शून्य जैसा प्रतीत हो रहा है।​जयजय श्रीश्यामाश्याम

श्लोक 8:

आश्लीष्य वा पाद-रतां पिनष्टु माम् आदर्शनान् मर्म-हतां करोतु वा।
यथा तथा वा विदधातु लंपटो मत्-प्राण-नाथस्तु स एव नापरः॥​Vaishnava Gitavali+1जयजय श्रीश्यामाश्याम+1

अनुवाद: हे प्रभु! आप जैसा चाहें वैसा व्यवहार करें, मुझे अपने चरणों में आलिंगन करें या दर्शन न देकर मुझे व्यथित करें

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