
🌸 वैशाख पूर्णिमा की वह अद्भुत रात्रि:
एक दिन वैशाख मास की पूर्णिमा को, स्नान और पूजा के उपरांत जब वे शालग्राम शिला को स्नान करा रहे थे, तो उन्हें एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया —
उनकी एक शिला से एक अत्यंत सुंदर श्रीकृष्ण विग्रह प्रकट हो गया था, जिनका स्वरूप साक्षात राधारमण के रूप में था — श्रीकृष्ण जिनमें श्रीराधाजी की भी छवि झलकती है।
यह दिव्य विग्रह न तो किसी मूर्तिकार ने बनाया था, न ही कहीं से लाया गया था। यह तो स्वयं भगवान का “स्वयं प्रकट” स्वरूप था। इसलिए श्रीराधारमण जी को स्वयंभू देव माना जाता है।
🙏 विशेषताएँ:
- श्रीराधारमण जी की मूर्ति अत्यंत लघु है, परन्तु उसका सौंदर्य वर्णनातीत है।
- मूर्ति में श्रीराधाजी की भी मधुरता समाहित है — इसलिए उन्हें “राधा” और “रमण” दोनों का स्वरूप कहा जाता है।
- श्रीराधारमण मंदिर, वृंदावन में आज भी यह दिव्य विग्रह भक्तों को दर्शन देते हैं।
🕉 शिक्षा और भक्ति सन्देश:
“जब प्रेम और सेवा की भावना निष्कलंक होती है, तब भगवान स्वयं भक्त के सामने प्रकट हो जाते हैं।”
📿 दोहे में भाव:
भक्ति भाव से जो करे, सेवा प्रेम अपार।
उसके घर आनन्द से, प्रकटे ब्रजविहार॥
श्रीराधारमण लाल जू का दिव्य प्राकट्य
“जय श्री राधे! जय निताई!”
आज का दिन समस्त वैष्णवों के लिए विशेष श्रद्धा और आनंद का विषय है, क्योंकि यह दिवस श्रीराधारमण लाल जू के दिव्य प्राकट्य का पावन अवसर है। यह उत्सव वृंदावनधाम के हृदय में स्थित श्रीराधारमण मंदिर में अत्यंत भव्यता और प्रेमभाव से मनाया जाता है। आज के दिन श्री विग्रह का विशेष अभिषेक होता है, जो जन्माष्टमी की रात की भाँति अलौकिक होता है।
गोपाल भट्ट गोस्वामी और शालिग्राम सेवा
श्रीराधारमण जी का प्राकट्य लीला-संपन्न है। श्रीगौड़ीय परंपरा के महान आचार्य श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी के पास बारह शालिग्राम शिलाएँ थीं, जिनमें से एक शिला स्वयं श्रीराधारमण जी के रूप में प्रकट हुई।
एक दिन की बात है—जब वृंदावन के किसी भक्त ने सभी विग्रहों के लिए नवीन वस्त्र एवं आभूषण अर्पित किए, तब गोपाल भट्ट जी के मन में भाव आया—”यदि मेरे शालिग्राम भी विग्रह रूप होते, तो मैं भी उन्हें सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सुसज्जित कर पाता।”
प्रार्थना और प्रभु की करुणा
उसी दिन उनके हृदय में एक और भाव उदित हुआ। यह दिन नरसिंह चतुर्दशी के ठीक बाद का था। उन्हें स्मरण हुआ कि जैसे प्रभु ने प्रह्लाद की पुकार पर खंभे से प्रकट होकर उसकी रक्षा की, क्या वैसे ही मेरे भी भाव से तृप्त होकर यह शालिग्राम शिला साक्षात विग्रह रूप में प्रकट नहीं हो सकती?
इस चिंतन में निमग्न होकर वे रात्रि में सो गए। और फिर प्रभात का वह अलौकिक क्षण आया—जब गोपाल भट्ट जी ने देखा कि उनकी शालिग्राम शिला अब नहीं रही, वहाँ अब साक्षात त्रिभंग लाल श्रीराधारमण लाल जी विग्रह रूप में विराजमान हैं—कमर में मुर्गी का पंख, मुस्कान में माधुर्य की वर्षा, और नेत्रों में करुणा व लीलारस की झलक।
श्री विग्रह की विशेषता
विशेष बात यह है कि श्रीराधारमण जी का यह विग्रह स्वयंभू (स्वतः प्रकट) है—किसी मूर्तिकार द्वारा निर्मित नहीं। यह एकमात्र ऐसा श्रीविग्रह है जिसमें श्रीकृष्ण का रूप होते हुए भी श्रीराधारानी का भाव समाहित है। अतः यह श्रीराधा-कृष्ण की संयुक्त मूर्ति मानी जाती है।
प्राकट्योत्सव का महात्म्य
आज भी वृंदावन के इस मंदिर में अत्यंत श्रद्धा, विधि-विधान और भक्ति-भाव से श्रीराधारमण जी की सेवा होती है। भक्तगण इस दिन विशेष पूजन, महाअभिषेक, श्रृंगार, भोग, और आरती में भाग लेते हैं। प्रभु सजीव भाव से अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और उनके जीवन को कृपा से आलोकित करते हैं।
दोहा:
भक्ति भाव से जो सुमिरै, राधारमण का नाम।
जीवन सारा सुधर जाए, मिटे सकल संग्राम॥
आज के इस पावन प्राकट्य दिवस पर, हम सभी श्रीराधारमण लाल जी को शत-शत नमन, वंदन और प्रेमपूर्वक प्रणाम करते हैं।
जय श्री राधे! जय श्री राधारमण लाल! जय निताई!

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