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मान लीला: श्रीराधा का कृष्ण से रूठना और पुनः मिलन

मान लीला: श्रीराधा का कृष्ण से रूठना और पुनः मिलन

श्रीकृष्ण और श्रीराधा की लीलाएं अत्यंत रहस्यमयी और दिव्य हैं। इनमें मान लीला विशेष स्थान रखती है, जहाँ श्रीराधा का रूठना और कृष्ण का उन्हें मनाना भक्ति और प्रेम की गहराई को प्रकट करता है। यह लीला प्रतीकात्मक रूप से भक्त और भगवान के प्रेम के बीच के मधुर संबंध को दर्शाती है।


लीला का आरंभ

वृंदावन में राधा-कृष्ण और सखियों के संग रासलीला चल रही थी। श्रीकृष्ण की मनमोहिनी छवि और उनकी बांसुरी की धुन से गोपियों का हृदय विभोर था।

अचानक, श्रीराधा को ऐसा प्रतीत हुआ कि कृष्ण अन्य गोपियों की ओर अधिक ध्यान दे रहे हैं।

उनका हृदय विचलित हुआ, और वे बिना कुछ कहे निकुंज में चली गईं।

श्लोक:
“राधा रूठीं जब प्रीतम से, सब ब्रज हुआ अधीर।
कृष्ण बिना श्यामा शून्य सा, सारा निकुंज वन वीर।”


श्रीराधा का मान (रूठना)

श्रीराधा का रूठना कोई साधारण घटना नहीं थी। उनका मान प्रेम का उच्चतम स्वरूप है, जिसमें प्रेम में गहराई और समर्पण की परीक्षा होती है।

श्रीराधा ने अपने आप को एक कुंज में छुपा लिया।

गोपियों ने उन्हें मनाने का प्रयास किया, लेकिन वे अपनी पीड़ा में मग्न रहीं।

रहस्य:
यह रूठना भक्त की उस अवस्था को दर्शाता है जब वह भगवान से अधिक स्नेह और ध्यान की आकांक्षा करता है।


श्रीकृष्ण का मनाना

श्रीकृष्ण, जो सच्चे प्रेम के ज्ञाता हैं, श्रीराधा के मान को समझ गए।

वे मुरली बजाते हुए निकुंज की ओर बढ़े, लेकिन श्रीराधा प्रकट नहीं हुईं।

उन्होंने अपनी दिव्य लीला से श्रीराधा का हृदय पिघलाने का प्रयास किया।

सखियों ने कृष्ण को परामर्श दिया:
“श्याम, प्रिय मनाएं प्रियतम को, रूठे मन को छू लें।
उनके चरणों में शीश रखें, प्रेम से सब बाधा भूलें।”


मान का अंत: पुनर्मिलन

श्रीकृष्ण ने श्रीराधा के चरण पकड़कर प्रार्थना की:
“हे प्रिय, तुम मेरे जीवन का सार हो। यदि तुम्हारा प्रेम न हो, तो यह जीवन व्यर्थ है। कृपया मेरा अपराध क्षमा करो।”

श्रीराधा का हृदय पिघल गया।

उनका मान समाप्त हुआ, और दोनों का मिलन हुआ।

श्लोक:
“प्रेम जहां रूठे, वहीं हो ठांव, मनाने का।
जग में वह सुख कहां, प्रेम दिखाने का।”


मान लीला का गूढ़ रहस्य

प्रेम की गहराई: श्रीराधा का मान दर्शाता है कि प्रेम सच्चा हो तो उसमें निष्ठा और गहराई होती है।

भगवान की कृपा: श्रीकृष्ण यह लीला करके बताते हैं कि भगवान अपने भक्तों के प्रेम को स्वीकार करते हैं और उसे महत्व देते हैं।

भक्ति का मार्ग: यह लीला सिखाती है कि भक्ति में कभी-कभी भक्त को ऐसा लगता है कि भगवान उससे दूर हो गए हैं, लेकिन यह भगवान की परीक्षा होती है।


श्रीमान लीला से प्रेरणा

अपने प्रेम को निष्ठा और समर्पण से निभाएं।

यदि जीवन में भगवान की कृपा क्षणभर के लिए दूर लगे, तो धैर्य रखें।

भक्ति और प्रेम का संबंध सांसारिक अपेक्षाओं से ऊपर है।

दोहा:
“राधा-श्याम मिलन का, यह रहस्य अनमोल।
प्रेम में रूठा मन, पावे स्नेह का मोल।”

क्या आप इस लीला को किसी और दृष्टिकोण से विस्तृत करना चाहेंगे?

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