श्रीजानकी प्राकट्य महोत्सव: करुणामयी जननी के श्रीचरणों में श्रद्धा-सुमन
॥ श्रीसीतारामाभ्यां नमः ॥
“उद्भव स्थिति संहार कारिणीं क्लेश हारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं राम वल्लभाम्॥”
जो जननी अनंतकोटि ब्रह्मांडों की आदि शक्ति हैं, जो समस्त क्लेशों का नाश कर, जीवन को शुभत्व से परिपूर्ण करती हैं—ऐसी पराशक्ति स्वरूपा श्रीसीता जी को, श्रीराम के हृदय की अधिष्ठात्री को, शत-शत प्रणाम।
आज का यह पावन दिवस, जब रामप्राण वल्लभा, जानकी माता ने मिथिला में अवतरण लेकर धर्म, त्याग, मर्यादा और प्रेम की गाथा को जीवित किया—यह केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि हर जीव के हृदय में करुणा, भक्ति और नारीत्व की दिव्य ज्योति जलाने का उत्सव है।
श्रीजानकी जी का जीवन पतिव्रता धर्म, आत्मबल और सहनशीलता की चरम पराकाष्ठा है। वे विदेहराज जनक की कन्या होकर भी समस्त संसार की जननी बनीं। राम के बिना सीता नहीं, और सीता के बिना राम भी अधूरे—यह युगल-तत्त्व ही हमारी साधना का केंद्र है।
हम श्रीसीता-राम युगल सरकार से यह करबद्ध प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे हृदय कमल में सदा निवास करें, अपनी चरणों की रस रूपा, प्रेम लक्षणा भक्ति से हमारे जीवन को धन्य करें।
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥
भावार्थ व प्रेरणा:
श्रीजानकी जी की कृपा से ही हृदय निर्मल होता है, विवेक जागृत होता है और भक्ति मार्ग सुगम बनता है। उनकी आराधना केवल स्त्री-मर्यादा की नहीं, बल्कि जीवन में उच्च आदर्शों की स्थापन है। वे हमें सिखाती हैं कि प्रेम में त्याग, सहनशीलता में शक्ति, और समर्पण में मुक्ति है।

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