हे केशव ! कुछ समझ गया, पर कुछ-कुछ असमंजस में हूँ
इतना समझ गया कि मैं न स्वयं ही खुद के वश में हूँ
ये मान और सम्मान बताओ जीवन के अपमान बताओ
जीवन मृत्यु क्या है माधव? रण में जीवन दान बताओ
काम, क्रोध की बात कही मुझको उत्तम काम बताओ
अरे! खुद को ईश्वर कहते हो तो जल्दी अपना नाम बताओ
इतना सुनते ही माधव का धीरज पूरा डोल गया
तीन लोक का स्वामी फिर बेहद गुस्से में बोल गया
सारे सृष्टि को भगवान बेहद गुस्से में लाल दिखे
देवलोक के देव डरे सबको माधव में काल दिखे
अरे ! कान खोल कर सुनो पार्थ मै ही त्रेता का राम हूँ
कृष्ण मुझे सब कहते है, मै द्वापर का घनश्याम हूँ
रूप कभी नारी का धरकर मै ही केश बदलता हूँ
धर्म बचाने की खातिर, मै angit वेष बदलता हूँ
विष्णु जी का दशम रूप मैं परशुराम मतवाला हूँ
नाग कालिया के फन पे मैं मर्दन करने वाला हूँ
बांकासुर और महिषासुर को मैने जिंदा गाड़ दिया
नरसिंह बन कर धर्म की खातिर हिरण्यकश्यप फाड़ दिया
रथ नहीं तनिक भी चलता है, बस मैं ही आगे बढ़ता हूँ
धनुष हाथ में तेरे, पर रणभूमि में मैं लड़ता हूँ
इतना कहकर मौन हुए, फिर खुद सकुचाये केशव
पलक झपकते ही अपने दिव्य रूप में आये केशव
दिव्य रूप का तेज अनोखा सबसे अलग दमकता था
कई लाख सूरज जितना चेहरे पर तेज चमकता था
इतने ऊँचे थे भगवान सर में अम्बर लगता था
और हजारों भुजा देख अर्जुन को डर लगता था
माँ गंगा का पावन जल उनके कदमों को चूम रहा था
और तर्जनी ऊँगली में भी चक्र सुदर्शन घूम रहा था
नदियों की कल-कल सागर का शोर सुनाई देता था
कृष्ण के अंदर पूरा ब्रह्मांड दिखाई देता था
जैसे ही मेरे माधव का कद थोड़ा-सा बढ़ा हुआ
सहमा-सहमा सा था अर्जुन, एक-दम रथ से खड़ा हुआ
गीता के इस ज्ञान से सीधे ह्रदय में ऐसे प्रहार हुआ
मृत्यु के आलिंगन हेतु फिर अर्जुन तैयार हुआ
मैं धर्म भुजा का वाहक हूँ, कोई मुझको मार नहीं सकता
जिसके रथ पर भगवान हो वो युद्ध में हार नहीं सकता
जितने यहाँ अधर्मी है चुन-चुनकर उन्हें सजा दूंगा
इतना रक्त बहाऊंगा धरती की प्यास बुझा दूंगा
अर्जुन की आँखों में धर्म का राज दिखाई देता था
पार्थ में अब केशव को बस यमराज दिखाई देता था
जिधर चले फिर बाण पार्थ के सब पीछे हट जाते थे
रणभूमि के कोने-कोने लाशों से पट जाते थे
कुरुक्षेत्र की भूमि पे तब नाच नचाया अर्जुन ने
सारी धरती लाल हुई कोहराम मचाया अर्जुन ने
बड़े-बड़े योद्धाओं को भी नानी याद दिलाई थी
मृत्यु का वो तांडव था जो मृत्यु भी घबराई थी
ऐसा लगता था सबको मृत्यु से प्यार हुआ है जी
धर्म का ऐसा युद्ध जगत में पहली बार हुआ है जी!
धर्मराज के शीश के ऊपर राजमुकुट की छाया थी
पर दुनिया यह जानती थी ये बस केशव की माया थी
धर्म की रक्षा वाले, दाता दया निधान की जय!
हाथ उठा कर सारे बोलो, चक्रधारी भगवान की जय!
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