इस लेख में प्रस्तुत सामग्री का आधार इन महान संतों द्वारा किए गए गहन अध्ययन और अनुभूतियों पर आधारित है। इनकी टीकाएँ न केवल शास्त्रीय गहराई को समझने में सहायक हैं, बल्कि भक्तिमार्ग के अनुयायियों के लिए मार्गदर्शन का एक अमूल्य स्रोत भी हैं। पूज्य संतों के अनुभव, उनके द्वारा बताए गए आध्यात्मिक रहस्यों और जीवन में भगवान की भक्ति के महत्व को सरल और सहज रूप में समझाते हैं, जिससे साधक अपने जीवन में ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा और भक्ति उत्पन्न कर सके।
इस लेख का उद्देश्य उन गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को उजागर करना है, जो जीवन के हर पहलू में भक्त को सही मार्ग दिखाने में सहायक हों।
भक्तमाल का परिचय
महाभागवत श्री नाभादास जी महाराज एक उच्च कोटि के संत हुए हैं जिन्होंने इस संसार में श्री भक्तमाल ग्रंथ का प्राकट्य किया। इस ग्रंथ में भगवान के भक्तों के चरित्रों का नाभाजी द्वारा स्मरण किया गया है। इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि इसमें सभी संप्रदायाचार्यों और सभी संप्रदायों के संतों का समान भाव से श्रद्धापूर्वक संस्मरण किया गया है।
संतों की महिमा तो भगवान से भी बढ़कर है, क्योंकि संत प्रियतम के भी प्रिय होते हैं। भगवान अपने भक्तों को स्वयं से भी अधिक आदर देते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है: “मोते संत अधिक कर लेखा”
अर्थात, भगवान स्वयं से अधिक महिमा अपने भक्तों की करते हैं। गोस्वामी जी ने एक और पद में लिखा है –
“संतन के गुण गनत सुतारी।
कहहुं कौन गति संत विहारी।।”
अर्थात, संतों के गुणों का वर्णन करना अत्यंत कठिन है, और जहां संत नहीं हैं, वहां भगवान का भी निवास नहीं होता।
भक्तमाल नाम का रहस्य
जैसा कि भक्तमाल नाम से ही स्पष्ट है, यह ग्रंथ भक्तों के परम पवित्र चरित्र रूपी पुष्पों की एक अत्यंत रमणीय माला के रूप में गुंफित है। इस सरस, सौरभमयी, और कभी भी म्लान न होने वाली सुमन मालिका को श्री हरि नित्य-निरंतर अपने श्रीकंठ में धारण किए रहते हैं। जिस प्रकार माला में चार मुख्य वस्तुएं होती हैं—मणियाँ, सूत्र, सुमेरु, और फुंदना (गुच्छा)—उसी प्रकार भक्तमाल में भी चार तत्व विद्यमान हैं।
- भक्तजन मणियों के रूप में हैं, जो इस माला का मुख्य अंग हैं।
- भक्ति वह सूत्र है, जिसमें ये मणियाँ पिरोई जाती हैं।
- माला के ऊपर जो सुमेरु होता है, वह श्री गुरुदेव हैं, जो इस माला के आधार स्तंभ हैं।
- और सुमेरु के जो गाँठ रूपी गुच्छा है, वह हमारे श्री भगवान हैं, जो भक्तों और भक्ति दोनों का परम स्रोत हैं।
भक्तमाल कोई सामान्य रचना नहीं है, बल्कि यह एक आशीर्वादात्मक ग्रंथ है। इसे श्री नाभादास जी की समाधि वाणी कहा जाता है, जो तपस्वी, सिद्ध और महान् संत की अहैतुकी कृपा एवं आशीर्वाद से प्रकट हुआ है। महाभागवत नाभादास जी जन्म से नेत्रहीन थे, परंतु जब श्री गुरुदेव की कृपा से उन्हें दृष्टि प्राप्त हुई, तब सबसे पहले उन्होंने संसार नहीं, बल्कि संतों का दर्शन किया। यह घटना उनके जीवन और उनके आध्यात्मिक दृष्टिकोण की महत्ता को दर्शाती है, और इसी भाव से उन्होंने इस भक्तमाल की रचना की।
इस ग्रंथ में नाभाजी ने भक्तों की महिमा, उनके चरित्र, और भक्ति की सर्वोच्चता को अत्यंत सरल, परंतु गहन भाषा में प्रस्तुत किया है। यह ग्रंथ केवल पठन के लिए नहीं, बल्कि साधक के लिए एक आशीर्वाद रूप में है, जो उसे आध्यात्मिक पथ पर प्रेरित और प्रोत्साहित करता है।
[…] […]