भगवान श्रीकृष्ण की शाश्वत लीलाएँ

भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं हैं, अपितु वे सर्वकालिक, शाश्वत और अनवरत रूप से चलने वाली दिव्य क्रियाएँ हैं। वे किसी एक युग, देश या ब्रह्मांड तक सीमित नहीं रहतीं। जिस प्रकार सूर्य पृथ्वी के एक भाग में अस्त होता है तो उसी समय किसी अन्य भाग में उदय होता है, उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण भी किसी न किसी ब्रह्मांड में सदा अपनी लीलाओं का प्राकट्य करते रहते हैं।

जब एक ब्रह्मांड में उनकी लीला पूर्ण होती है, उसी क्षण किसी अन्य ब्रह्मांड में उसी लीला का प्रारम्भ हो जाता है। यह निरंतरता ही उनकी नित्य-लीला कहलाती है। जैसे सूर्य क्रमशः पूर्व से पश्चिम की ओर संचरण करता है, वैसे ही श्रीकृष्ण की बाल्य, पौगण्ड, कौमार और यौवन लीलाएँ भी निरंतर अनेक ब्रह्मांडों में प्रकट होती रहती हैं।

श्रीमद्भागवतम् में उल्लेख है कि भगवान की प्रत्येक लीला केवल आनंद प्रदान करने वाली नहीं है, अपितु आत्मा के उद्धार का परम साधन भी है। श्रीकृष्ण की लीलाओं में न कोई आदि है, न अंत—वे नित्य और अविनाशी हैं।
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥”
— श्रीमद्भगवद्गीता 4.7
इस श्लोक के अनुसार भी भगवान काल-देश की सीमाओं से परे होकर अनेक ब्रह्मांडों में अपनी उपस्थिति द्वारा भक्तों का उद्धार करते रहते हैं।
इस प्रकार श्रीकृष्ण की लीलाएँ न केवल ऐतिहासिक गौरव हैं, अपितु आज भी, अभी भी, कहीं न कहीं घटित हो रही हैं—नित्य, नवीन और पूर्ण।
राधे राधे।

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