प्रभु की अनंत लीला और उनके अवतारों की महिमा इस ब्रह्मांड के कण-कण में बसी हुई है। हर अवतार में उन्होंने इस संसार के कल्याण और धर्म की रक्षा के लिए, अपने दिव्य स्वरूप को प्रकट किया। उनकी ये अवतार कथाएँ हमारे जीवन को प्रकाशमान करने वाले दीपक हैं, जिनमें प्रभु के असीम प्रेम और शक्ति की झलक मिलती है।
- पहला अवतार— प्रभु ने कौमारसर्ग में सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार के रूप में अवतार लिया। उन्होंने अत्यन्त कठिन अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए संसार को ज्ञान और तपस्या का मार्ग दिखाया। इन चार ब्राह्मण रूपों में प्रभु का दर्शन सृष्टि के अनादिकाल से ही आत्मज्ञान और वैराग्य का संदेश देता है।
- दूसरा अवतार— जब पृथ्वी रसातल में चली गई, तब भगवान ने यज्ञों के स्वामी सूकर रूप धारण कर पृथ्वी को उठाया और संसार को फिर से स्थिर किया। उनका यह वराह अवतार असीम करुणा और शक्ति का प्रतीक है, जिसमें उन्होंने सृष्टि की रक्षा के लिए अपना दिव्य रूप धारण किया।
- तीसरा अवतार— देवर्षि नारद के रूप में प्रभु ने अवतार लेकर भक्ति और संगीत का अमृत संसार को प्रदान किया। नारदजी के रूप में उन्होंने भगवान की कथा और संगीत के माध्यम से भक्ति का प्रचार किया।
- चौथा अवतार— धर्मपत्नी मूर्ति के गर्भ से नर-नारायण रूप में अवतार लेकर भगवान ने तपस्या की गहन महिमा को प्रकट किया। यह अवतार हमें जीवन में संयम और धैर्य की महत्ता सिखाता है।
- पाँचवाँ अवतार— सिद्धों के स्वामी कपिल मुनि के रूप में अवतरित होकर उन्होंने सांख्य योग का उपदेश दिया। उनकी शिक्षाओं ने संसार को आत्मज्ञान और मोक्ष का मार्ग दिखाया।
- छठा अवतार— माता अनसूया की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने अत्रि ऋषि के पुत्र दत्तात्रेय के रूप में अवतार लिया। इस अवतार में उन्होंने संसार को योग, ज्ञान और भक्ति का अद्भुत संगम दिया।
- सातवाँ अवतार— रुचि प्रजापति की पत्नी आकृति से यज्ञ रूप में अवतरित होकर प्रभु ने सृष्टि की आधारशिला को सुदृढ़ किया। यज्ञ के रूप में उनका अवतरण संसार के कल्याण और संतुलन के लिए था।
- आठवाँ अवतार— राजा नाभि की पत्नी मेरु देवी के गर्भ से ऋषभदेव के रूप में प्रकट होकर भगवान ने त्याग और संन्यास की महिमा को स्थापित किया।
- नौवाँ अवतार— ऋषियों की प्रार्थना पर राजा पृथु के रूप में अवतरित होकर उन्होंने पृथ्वी को दुहने का कार्य किया। इस अवतार में उन्होंने प्रजापालन और धर्म की स्थापना का संदेश दिया।
- दसवाँ अवतार— जब चाक्षुष मन्वंतर के अंत में त्रिलोकी समुद्र में डूबने लगी, तब भगवान ने मत्स्य रूप धारण किया और वेदों की रक्षा की।
- ग्यारहवाँ अवतार— जब देवता और दैत्य समुद्र मंथन कर रहे थे, तब भगवान ने कच्छप रूप धारण कर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया और सृष्टि को स्थिर किया।
- बारहवाँ अवतार— धन्वंतरि के रूप में अमृत लेकर समुद्र से प्रकट होकर भगवान ने संसार को औषधियों का वरदान दिया।
- तेरहवाँ अवतार— मोहिनी रूप में भगवान ने दैत्यों को मोहित करके देवताओं को अमृतपान कराया और उनका कल्याण किया।
- चौदहवाँ अवतार— नरसिंह रूप धारण करके भगवान ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और हिरण्यकशिपु का संहार किया। यह अवतार भक्त वत्सलता और धर्म की रक्षा का प्रतीक है।
- पंद्रहवाँ अवतार— वामन रूप धारण करके भगवान बलि के यज्ञ में पहुंचे और तीन पग भूमि मांगकर त्रिलोक को पुनः संतुलित किया।
- सोलहवाँ अवतार— परशुराम रूप में उन्होंने जब देखा कि क्षत्रिय अधर्मी हो गए हैं, तब क्रोध में आकर उन्होंने पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से शून्य कर दिया।
- सत्रहवाँ अवतार— सत्यवती के गर्भ से पराशर ऋषि के द्वारा भगवान वेदव्यास के रूप में अवतरित हुए और वेदों का विभाजन कर संसार को ज्ञान का अमृत प्रदान किया।
- अठारहवाँ अवतार— भगवान राम के रूप में अवतरित होकर उन्होंने धर्म की स्थापना की और राक्षसों का संहार किया। यह अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम की महिमा को प्रकट करता है।
- उन्नीसवाँ और बीसवाँ अवतार— यदुवंश में बलराम और श्रीकृष्ण के रूप में प्रकट होकर भगवान ने पृथ्वी का भार उतारा और धर्म की स्थापना की।
- हरी अवतार— गजेन्द्र की पुकार सुनकर भगवान ने उसे मुक्ति दिलाई, उनकी यह करुणा अनंत है।
- हंसा अवतार— सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार को उपदेश देकर प्रभु ने ज्ञान और वैराग्य का मार्ग प्रशस्त किया।
- अजन के पुत्र बुद्ध अवतार— जब संसार में हिंसा और अधर्म फैल गया, तब भगवान ने बुद्ध के रूप में अवतार लेकर करुणा और अहिंसा का संदेश दिया।
- कल्कि अवतार— कलियुग के अंत में, जब अधर्म और अन्याय चरम पर होगा, तब भगवान विष्णु ब्राह्मण विष्णुयश के घर कल्कि रूप में अवतरित होकर धर्म की पुनः स्थापना करेंगे।
भगवान के इन दिव्य अवतारों की कथा हमें यह सिखाती है कि जब भी संसार में अधर्म और अज्ञान बढ़ता है, तब प्रभु अवतार लेकर धर्म की रक्षा और भक्तों का कल्याण करते हैं।
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