Press "Enter" to skip to content

भगवान श्री राधाकृष्ण की 64 प्रकार की गुप्त सेवा

colorful indian street wall art of deities
Photo by Trishik Bose on Pexels.com

भगवान श्री राधाकृष्ण की 64 प्रकार की गुप्त सेवा का उल्लेख वैष्णव ग्रंथों में मिलता है, विशेष रूप से गौड़ीय वैष्णव परंपरा में। यह सेवाएँ प्रेम, भक्ति और अंतरंगता से परिपूर्ण होती हैं और भक्तों को राधाकृष्ण की मधुर लीला में प्रवेश करने का मार्ग प्रदान करती हैं।

श्री राधाकृष्ण की 64 गुप्त सेवाएँ

1-8: प्रातःकालीन सेवा (मंगल आरती से स्नान तक)

  1. मंगल आरती – श्री राधाकृष्ण की जागरण सेवा।
  2. पादप्रक्षालन – श्री युगल चरण कमलों को गंगाजल व पंचामृत से धोना।
  3. दंत मंजन – दत्तवन (नीम/मिस्वाक) से श्रीकृष्ण के दंतों की सफाई।
  4. स्नान – विविध सुगंधित जलों से श्रीराधाकृष्ण का स्नान कराना।
  5. वस्त्र एवं आभूषण – दिव्य वस्त्र एवं आभूषण धारण कराना।
  6. श्रृंगार सेवा – विभिन्न प्रकार के गहने, फूल, इत्र, काजल आदि से श्रीराधाकृष्ण को सजाना।
  7. महा-प्रसाद सेवा – विविध प्रकार के फल, मिठाइयाँ व मिष्टान्न अर्पित करना।
  8. ताम्बूल सेवा – श्रीराधाकृष्ण को सुगंधित पान अर्पित करना।

9-16: शृंगार-लीला एवं वन-भ्रमण सेवा

  1. अलंकृत सवारी – राधाकृष्ण को स्वर्ण-रत्न जटित झूले या रथ पर बैठाना।
  2. सुवासित पुष्प-मालाएँ – विशेष सुगंधित पुष्पों से निर्मित मालाएँ पहनाना।
  3. वीणा एवं गान सेवा – वीणा, मृदंग, बांसुरी और गान द्वारा मधुर संगीत सुनाना।
  4. नृत्य सेवा – गोपियों द्वारा श्रीराधाकृष्ण के सम्मुख नृत्य करना।
  5. चँवर सेवा – मोर पंख व यक्ष-पूँछ चँवर द्वारा श्रीराधाकृष्ण को हवा देना।
  6. फूलों की वर्षा – पुष्पों की वर्षा कर वातावरण को सुगंधित व आनंदमय बनाना।
  7. मणिमय सिंहासन सेवा – रत्नजटित सिंहासन पर विराजमान कराना।
  8. वन-भ्रमण सेवा – वृंदावन के कुंजों में श्रीराधाकृष्ण के साथ भ्रमण करना।

17-24: मध्यान्ह सेवा (दिव्य क्रीड़ाएँ)

  1. कुंज-सेवा – राधिकाजी की सेवा के लिए निकुंजों को सजाना।
  2. चित्रकारी सेवा – विविध प्रकार की मधुर चित्रकारी एवं रंगोली से कुंज को अलंकृत करना।
  3. सुगंधित धूप सेवा – कर्पूर, अगरू, चंदन एवं केसर से युक्त धूप जलाना।
  4. दिव्य भोज सेवा – विविध व्यंजनों से परिपूर्ण महा-भोग अर्पित करना।
  5. हास-परिहास सेवा – श्रीराधाकृष्ण के साथ हास्य विनोद करना।
  6. जल-क्रीड़ा सेवा – यमुना जी में जल-क्रीड़ा कराना।
  7. अनुराग-कथन सेवा – प्रेम और अनुराग से ओतप्रोत गीत व संवाद करना।
  8. मधुरस सेवा – श्रीकृष्ण को शीतल और सुगंधित पेय अर्पित करना।

25-32: सायंकालीन सेवा (आराम और शांति)

  1. प्रसन्नता सेवा – श्रीराधाकृष्ण को प्रसन्न करने हेतु विविध सेवा करना।
  2. पुष्प-वाटिका सेवा – युगल सरकार को पुष्प वाटिका में ले जाना।
  3. चरण द्रवण सेवा – चरणों में सुगंधित तेल व गंध का लेपन करना।
  4. स्वर्ण दिवान सेवा – विश्राम हेतु सुवर्ण-शैया का प्रबंध करना।
  5. गुप्त प्रेम सेवा – श्रीराधाकृष्ण की अंतरंग लीलाओं की सेवा।
  6. मनोहर भजन सेवा – मीठे भजनों व रास-गीतों से वातावरण को भक्तिमय बनाना।
  7. मलयानिल सेवा – चंदन युक्त ठंडी हवा से प्रभु को सुख देना।
  8. कुंज-गमन सेवा – राधाकृष्ण को विश्राम कक्ष तक ले जाना।

33-40: रात्रि-सेवा (स्वप्न एवं विश्राम)

  1. मंगल शैय्या सेवा – विश्राम हेतु शीतल एवं सुगंधित पुष्पों की शैया तैयार करना।
  2. स्वर्ण व ज्योति सेवा – चंदन से सुगंधित दीप जलाना।
  3. गुंजार सेवा – कोयल व भ्रमर की ध्वनि से मनोहर वातावरण बनाना।
  4. गंध सेवा – कस्तूरी, चंदन, केसर से युगल सरकार का श्रृंगार करना।
  5. स्वप्न संगीत सेवा – मधुर गीत गाकर निद्रा का सुखद अनुभव कराना।
  6. शीतल पवन सेवा – पंखा झलकर शीतलता प्रदान करना।
  7. संरक्षण सेवा – बाहरी व्यवधानों से रक्षा करना।
  8. प्रभात जागरण सेवा – राधाकृष्ण को मृदंग व वीणा की ध्वनि से जगाना।

41-48: विशेष अनुराग सेवा

  1. सखा भाव सेवा – सखाओं के रूप में श्रीकृष्ण की सेवा करना।
  2. दासी भाव सेवा – सखियों के रूप में श्रीराधाजी की सेवा करना।
  3. संगीत सेवा – मधुर स्वर में भजन और संकीर्तन करना।
  4. नृत्य सेवा – भाव-विभोर होकर रास-नृत्य करना।
  5. कहानी सेवा – श्रीराधाकृष्ण को प्रेमकथाएँ सुनाना।
  6. परिहास सेवा – श्रीकृष्ण से हास-परिहास करना।
  7. गुलाल सेवा – श्रीराधाकृष्ण को रंग-गुलाल से सुसज्जित करना।
  8. नीर सेवा – यमुना जल से स्नान कराना व चरण पखारना।

49-56: विशेष भोग सेवा

  1. पंचामृत सेवा – दूध, दही, घी, मधु व शर्करा से स्नान कराना।
  2. नवनीत सेवा – माखन और मिश्री का भोग लगाना।
  3. स्वर्ण पात्र सेवा – सोने व चाँदी के बर्तनों में प्रसाद अर्पण करना।
  4. सुगंध सेवा – चंदन, केसर, गुलाब जल का लेपन करना।
  5. हवन सेवा – अग्निहोत्र कर वातावरण को शुद्ध करना।
  6. अष्टांग सेवा – प्रेम, दान, सेवा, स्मरण, कीर्तन, वंदन, शरणागति व दास्य भाव से आराधना।
  7. संतोष सेवा – युगल सरकार को संतुष्ट व आनंदित रखना।
  8. प्रणाम सेवा – प्रेमपूर्वक श्रीराधाकृष्ण को नमन करना।

57-64: विशिष्ट आत्मनिवेदन सेवा

  1. स्मरण सेवा – सतत श्रीराधाकृष्ण का ध्यान करना।
  2. अनन्य भक्ति सेवा – एकचित्त होकर सेवा करना।
  3. गोपनीय प्रेम सेवा – अत्यंत अंतरंग प्रेम सेवा।
  4. सखा-सखी संग सेवा – लीलाओं में सखा-सखियों के संग रहना।
  5. रासलीला सेवा – दिव्य रास-लीला में भाग लेना।
  6. स्वरूप सिद्धि सेवा – श्रीराधाकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त करना।
  7. अखण्ड स्मरण सेवा – हर पल राधाकृष्ण का ध्यान रखना।
  8. परमानंद सेवा – प्रेम, भक्ति व आनंद से परिपूर्ण रहकर श्रीराधाकृष्ण की सेवा करना।

“राधे राधे! जय श्रीकृष्ण!”

two statues on a swing
Photo by anurag upadhyay on Pexels.com

Comments are closed.

You cannot copy content of this page