श्री चैतन्य चरितामृत — अमृतधारा का साक्षात स्वरूप
🙏 “वन्दे श्री-कृष्ण-चैतन्यं, नित्यानन्द-सहोधितम्। गौरोदयी पुष्पवनं, भक्त-चन्द्र निकाशकम्॥”

आज श्री चैतन्य चरितामृत जयंती के पावन अवसर पर समस्त भक्तों को कोटि-कोटि बधाइयाँ। यह वह दिन है जब श्री गौरांग महाप्रभु की दिव्य लीलाओं और उनके प्रेम-भक्ति के सन्देश को विश्वभर में फैलाने वाले ग्रंथ “श्री चैतन्य चरितामृत” के प्रकटन का पावन स्मरण किया जाता है।
यह ग्रंथ न केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, बल्कि यह प्रेम, करुणा, वैराग्य और भगवत-भक्ति की दिव्य धारा है, जिसे स्वयं श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामीजी ने अपनी अन्तःकरण की भावनाओं से लिखा।
✍️ श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामीजी एवं मूल हस्तलिखित पाण्डुलिपि
श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामीजी एक महान भक्त, तत्त्वज्ञानी आचार्य और गौर-लीला के रसिक लेखक थे। उन्होंने अत्यंत वृद्धावस्था में, नेत्रज्योति के लुप्त होने के बावजूद, केवल भक्ति की प्रेरणा से श्री चैतन्य महाप्रभु की जीवन-गाथा को लिपिबद्ध किया।
इनके द्वारा रचित श्री चैतन्य चरितामृत के मूल हस्तलिखित पन्ने आज भी बड़ी सूरमाकुञ्ज, श्री वृन्दावन धाम में सुरक्षित हैं। इन दुर्लभ पाण्डुलिपियों का दर्शन करना स्वयं श्री चैतन्य महाप्रभु के चरणों की धूलि प्राप्त करने जैसा है।
🛕 बड़ी सूरमाकुञ्ज — श्री वृन्दावन धाम की दिव्य धरोहर
बड़ी सूरमाकुञ्ज वह स्थान है जहाँ प्रेम-भक्ति की परंपरा जीवित है। यहाँ गोपियों के भाव में श्री राधा के प्रति निष्ठावान सेवक अपनी साधना करते हैं। इसी पवित्र धाम में श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामीजी की हस्तलिखित श्री चैतन्य चरितामृत की पाण्डुलिपि आज भी विद्यमान है।
वृन्दावन की उस पावन रज में, जहाँ श्री राधा-माधव ने अपनी लीलाओं का विस्तार किया, वहीं यह ग्रंथ लिखा गया। भक्तों के लिए यह न केवल एक ग्रंथ है, बल्कि जीवन का लक्ष्य है — प्रेममयी भक्ति की ओर अग्रसर होने का मार्गदर्शक।
🌼 श्री चैतन्य चरितामृत का महत्व
श्री चैतन्य चरितामृत श्री चैतन्य महाप्रभु के जीवन, उनके भक्तों, और उनकी भक्ति-क्रांति का ऐसा दस्तावेज है, जो साहित्यिक रूप से अद्वितीय, दार्शनिक रूप से गूढ़, और भावात्मक रूप से अत्यंत मधुर है। इसमें महाप्रभु की लीला, उनका नाम-संकीर्तन आंदोलन, और वेदान्त-भक्ति का सुंदर समन्वय मिलता है।
कुछ प्रमुख विशेषताएँ:
- श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का क्रमबद्ध विवरण (आदि लीला, मध्य लीला, अन्त्य लीला)
- श्री नित्यानन्द प्रभु, रघुनाथ दास गोस्वामी, रूप-सनातन, हरिदास ठाकुर जैसे महान भक्तों की चरितावली
- श्री गौरांग महाप्रभु का ‘अचिन्त्य भेदाभेद’ तत्त्व का प्रतिपादन
- श्रीमद्भागवत के साथ श्री राधा भाव में डूबी कृष्णभक्ति की शिक्षा
📖 प्रेरणा और समर्पण
यह ग्रंथ केवल पढ़ने या जानने के लिए नहीं, अपितु जीवन में उतारने के लिए है। श्रील कविराज गोस्वामीजी ने लिखा —
“कृष्ण नाम, लीला, गुण, रस, स्वरूप —
सर्वेश्वर श्री चैतन्यर हृदय-मधुर रूप॥”
उनकी लेखनी से निकले हर शब्द में नामरस की धारा बहती है, जो पढ़ने वाले के हृदय को शुद्ध कर देती है।

श्री चैतन्य चरितामृत जयंती विशेष: वृन्दावन की बड़ी सूरमाकुञ्ज में दुर्लभ मूल पाण्डुलिपि दर्शन

श्रीचैतन्यचरितामृत महिमा
“जेवा नाहि बुझे केह, शुनिते शुनिते सेह, कि अद्धभुत चैतन्य चरित।
कृष्णे उपजिबे प्रीति, जानिबे रसेर रीति, शुनिलेइ हय बड़ हित।।”
यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति भी श्रीचैतन्यचरितामृत नियमित रूप से श्रवण करता है वह चाहे श्रद्धा सहित या श्रद्धा रहित हो तो भी परम करुणामय गौरांग स्वरूप श्रीग्रंथ की कृपा से श्रीकृष्णप्रेम प्राप्त कर लेता है।
साथ ही श्री श्रीराधागोविंद जू की नित्य निकुंज लीला माधुरी, सखी – मंजरी भाव सहित “रासविलासेर परिणति, राइ कानु एकाकृति” रासविलास की परिणति, श्रीराधामाधव का एकीकृत स्वरूप श्रीगौरतत्व को जानकर तथा प्रेमसेवा संपत्ति को प्राप्त कर परम कृतार्थ हो जाता है।
धन्य है परम कृपालु श्रीचैतन्यचरितामृत की अहैतुकी करुणा। (चै०च० मध्य 2/87)
राधे राधे 🙏
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