श्री सनातन गोस्वामी जी द्वारा श्री मदन मोहन देव जी की प्रकट कथा भक्ति, प्रेम, और भगवान की लीला की एक अद्वितीय कथा है, जो यह बताती है कि किस प्रकार भगवान भक्त के हृदय की पुकार को सुनकर स्वयं प्रकट हो जाते हैं। यह कथा भक्तों को भक्ति और सेवा की सच्ची महिमा का संदेश देती है। इसे पुस्तक में संजोने के लिए कुछ दोहे, श्लोक, और जीवन की सीखों को प्रस्तुत किया गया है:
श्री मदन मोहन देव जी की प्रकट कथा:
श्री मदन मोहन जी के प्राकट्य की यह कथा अत्यंत रोचक और भक्तिपूर्ण है, जो भक्तों के समर्पण और भगवान की करुणा का सजीव चित्रण करती है। इस कथा को विस्तारपूर्वक और भावनात्मक रूप से प्रस्तुत करने के लिए, पुस्तक में इसे दोहों, श्लोकों, और शिक्षाओं के साथ संजोया जा सकता है। यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ दोहे, श्लोक और जीवन की सीखें जो इस कथा के साथ जोड़ी जा सकती हैं:
दोहा:
- चौबे की पत्नी कहे, मदन यहाँ रहियो। जब तक मन में प्रेम रहे, सदा स्नेह बनियो।।
- (अर्थ: चौबे की पत्नी ने भगवान मदन मोहन से प्रेमपूर्वक कहा कि जब तक मेरे मन में सच्चा प्रेम है, तब तक आप मेरे साथ रहना। सच्चे प्रेम के बिना भगवान का सान्निध्य मिलना कठिन है।)
- जहाँ प्रेम हो भक्त का, प्रभु वहाँ अवतरित। तोड़े सब कठिनाइयाँ, जब भक्त के हित।।
- (अर्थ: भगवान अपने भक्त के प्रेम के वश होकर अवतरित होते हैं और उसके जीवन की सभी कठिनाइयों का नाश करते हैं।)
- माखन मिश्री लेत हैं, चंचल लीलाधार। भक्त के मन मोहते, श्री मदन अविकार।।
- (अर्थ: भगवान मदन मोहन अपनी बाल-लीलाओं से मथुरा के लोगों के मन को चुराते हैं, और उनकी चंचलता अद्भुत और अनंत है।)
- सनातन ने लिया वचन, जैसा मैं खिलाऊँ। वैसा ही प्रभु मानते, संत के वश आऊँ।।
- (अर्थ: सनातन गोस्वामी ने भगवान से वचन लिया कि जैसे भी मैं खिला पाऊँ, वैसे ही आप प्रसन्न होकर भोजन स्वीकार करें, जिससे यह प्रकट होता है कि भक्त के प्रेम में भगवान बंध जाते हैं।)
श्लोक:
- “सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम्, संघेन किञ्चन न साध्यतमं विरागम्। दृष्टः स्वविक्रमान्वयिकश्च साक्षाद्, भक्ते: प्रभावो मदनस्य मोहनः।”
- अर्थ: सत्संग (सज्जनों की संगति) मनुष्य को क्या नहीं करा सकता? यह संसार के प्रति वैराग्य उत्पन्न कर सकता है। मदन मोहन भगवान की यह लीला भक्तों की निष्ठा और प्रभाव को साक्षात् प्रकट करती है।
- “अनन्याश्चिन्तयन्तो मां, ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां, योगक्षेमं वहाम्यहम्।।”
(श्रीमद्भगवद्गीता 9.22)
अर्थ: जो भक्त अनन्य भाव से मेरी पूजा और ध्यान करते हैं, उनके योग-क्षेम का भार मैं स्वयं वहन करता हूँ।
- “नाहं वसामि वैकुण्ठे, योगिनां हृदये न च। मद्भक्ता यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद।।”
(पद्मपुराण)
अर्थ: हे नारद! मैं न तो वैकुण्ठ में रहता हूँ, न ही योगियों के हृदय में; मैं वहीं रहता हूँ जहाँ मेरे भक्त मेरा नाम सच्चे भाव से गाते हैं।
शिक्षाएँ:
- सच्ची भक्ति से ही भगवान की प्राप्ति होती है:
चौबे की पत्नी ने बिना किसी संदेह और संकोच के भगवान मदन मोहन को अपने घर लाने का साहस किया। इससे यह शिक्षा मिलती है कि सच्चे प्रेम और भक्ति के साथ भगवान की सेवा करने से ही वे प्रसन्न होते हैं। - प्रेम का बल:
जब भगवान ने चौबे की पत्नी से वचन लिया कि “यदि तुम मुझे निकालोगी, तो मैं चला जाऊँगा,” तब यह प्रमाणित हो गया कि भगवान अपने भक्तों के प्रेम के वश में होते हैं। प्रेम में यदि शर्तें भी हों, तो भी भगवान उसे स्वीकार कर लेते हैं। - सनातन गोस्वामी की सेवा भावना:
सनातन गोस्वामी जी का जीवन त्याग, भक्ति, और सेवा का अनुपम उदाहरण है। उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी, फिर भी उन्होंने मदन मोहन जी की सेवा बिना किसी भौतिक अपेक्षा के की। इससे यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति का मूल्य धन या संपत्ति से नहीं, बल्कि समर्पण और सेवा से आँका जाता है। - भगवान भक्तों के जीवन में आते हैं, जब वे पुकारते हैं:
जब मदन मोहन को चौबे की पत्नी ने घर से निकाला, तो भगवान ने तुरंत सनातन गोस्वामी का साथ लिया। इससे यह संदेश मिलता है कि जब भी भक्त कठिनाई में होता है, भगवान उसकी रक्षा के लिए उपस्थित हो जाते हैं। - भक्त और भगवान का संबंध अद्वितीय होता है:
सनातन गोस्वामी ने भगवान को केवल आटे की बाटी और यमुना जल से तैयार भोजन कराया, लेकिन भगवान ने कभी शिकायत नहीं की। जब व्यापारी रामदास ने मंदिर बनवाया, तो भगवान ने उसके व्यापार को भी संवार दिया। यह प्रकट करता है कि सच्चे भक्त की सेवा के लिए भगवान सदा तैयार रहते हैं। - समर्पण से जीवन में चमत्कार होते हैं:
जब व्यापारी रामदास के जहाज को संकट हुआ, तब भगवान ने उसे बचाया और उसके नमक को हीरा-जवाहरात में बदल दिया। यह चमत्कार यह सिखाता है कि यदि हम समर्पण भाव से भगवान की सेवा करते हैं, तो भगवान हमारे जीवन में अद्भुत परिवर्तन ला सकते हैं। - वचन और सेवा का पालन:
सनातन गोस्वामी ने भगवान से जो वचन लिया था, उसे निभाया और भगवान ने भी सनातन जी की सेवा स्वीकार की। इससे यह सीख मिलती है कि एक भक्त और भगवान का संबंध वचन और सेवा पर आधारित होता है।
- भक्त जहां भी पुकार करे, सुनते प्रभु करुणानिधि। नाथ वही जो भक्त हित, हर ले दुख की वेदना।।
- भक्त के प्रेम में बंधे, रहते सदैव भगवान। मूर्त रूप धर धरा पर, करते सबका कल्यान।।
- जिसके ह्रदय में बसते, श्री राधे-श्याम सदा। संत वही जो जानता, भक्ति की सच्ची धरा।।
- सेवा प्रेम से कीजिए, चाहे हो धनहीन। जो मन से दे अर्पण, पाता प्रभु का दीन।।
श्लोक:
- “भक्त्या तु षड्भिर् जनमांतराप्तैर्, सेवां विना प्रेम न लभ्यते हि। यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चना, सर्वैर् गुणैस्तत्र समासते सुराः।।”
(श्रीमद्भागवत 5.18.12)
अर्थ: केवल भक्ति और सेवा से ही भगवान का प्रेम प्राप्त होता है। जिसके पास निष्कपट भक्ति होती है, देवता भी उसके गुणों से प्रभावित हो जाते हैं। - “सर्वधर्मान् परित्यज्य, मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो, मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।”
(श्रीमद्भगवद्गीता 18.66)
अर्थ: सब धर्मों का परित्याग करके केवल मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा। शोक मत करो। - “नाहं तिष्ठामि वैकुण्ठे, योगिनां हृदयेषु वा। मद्भक्ता यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद।।”
(पद्मपुराण)
अर्थ: हे नारद! मैं वैकुण्ठ में नहीं, न ही योगियों के हृदय में निवास करता हूँ; मैं वहीं रहता हूँ जहाँ मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन करते हैं।
जीवन की सीखें:
- भक्ति में धैर्य और विश्वास:
सनातन गोस्वामी जी के जीवन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति में धैर्य और विश्वास अति आवश्यक है। जब भक्त के पास साधन नहीं होते, तब भी भगवान स्वयं व्यवस्था कर देते हैं। - प्रेम और सेवा का महत्व:
भगवान श्री मदन मोहन जी की कथा यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति सेवा और प्रेम के रूप में होती है। जो भक्त भगवान की सेवा निष्कपट भाव से करता है, भगवान उसके जीवन में स्वयं प्रकट हो जाते हैं। - भक्ति में अभाव का कोई स्थान नहीं:
सनातन गोस्वामी जी के पास कोई संपत्ति या भौतिक सुख-सुविधाएँ नहीं थीं, फिर भी उनके प्रेम और समर्पण के कारण भगवान श्री मदन मोहन जी प्रकट हुए। इससे यह स्पष्ट होता है कि भक्ति के लिए भौतिक संपदा की आवश्यकता नहीं होती। - समर्पण और त्याग का महत्व:
सनातन गोस्वामी जी, जो पहले नवाब हुसैन शाह के दरबार में एक उच्च पद पर थे, उन्होंने सब कुछ त्यागकर भगवान की सेवा को अपना लिया। यह जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है कि हम संसार की माया को त्यागकर भगवान की भक्ति में स्वयं को समर्पित करें। - भगवान भक्तों के वश में हैं:
यह कथा यह भी सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों के प्रेम और सेवा से बंधे होते हैं। जब भी कोई भक्त प्रेमपूर्वक भगवान को पुकारता है, तो भगवान अवश्य ही प्रकट होते हैं और भक्तों के कल्याण के लिए कार्य करते हैं।
श्री सनातन गोस्वामी जी की श्री मदन मोहन जी के प्रति भक्ति और समर्पण, भक्तों के लिए एक मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत है। इसे पुस्तक में इन वचनों के साथ प्रस्तुत करना कथा को और भी जीवंत और प्रेरणादायक बनाएगा।
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