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गैलादास और गुरुजी का संवाद

गैलादास और गुरुजी का संवाद

गैलादास: “गुरुजी, परनाम।”
गुरुजी: “आओ गैलादास। कैसा चल रहा है भजन?”

गैलादास: “गुरुजी, आपकी कृपा से बहुत आनंदपूर्वक चल रहा है। आज प्रातः श्री वृन्दावन धाम की परिक्रमा भी कर आये।”

गुरुजी: “वाह! बहुत बढ़िया। कहाँ-कहाँ दर्शन किये?”

गैलादास: “दर्शन? दर्शन तो नहीं किये। सीधे गए और सीधे आये।”

गुरुजी: “चलो ठीक है। जितना नहाए, उतना पुण्य!”

गैलादास: “गुरुजी, आपने दर्शन का पूछा, तो क्या परिक्रमा करते समय दर्शन जाना चाहिए?”

गुरुजी: “और क्या! परिक्रमा की भी एक रीति है जिसे आजकल लोग भूलते जा रहे हैं। सब अपनी सुविधा के हिसाब से कर रहे हैं। खैर, अच्छा है कि तुमने परिक्रमा की। धीरे-धीरे, जब गुरु कृपा होगी, तो इन सबका रहस्य और रीति भी समझ जाओगे।”

गैलादास: “गुरुजी, मेरी जिज्ञासा बढ़ रही है, कुछ मार्गदर्शन कीजिये न!”

गुरुजी: “देखो बेटा, धाम चिन्मय है। धाम और धामी, दोनों एक हैं। जब तुम परिक्रमा करते हो, तो समझो कि धाम के हर ठाकुरजी की परिक्रमा कर रहे हो, चाहे वो मंदिर में हो या किसी के घर में। पहले के लोग जब परिक्रमा करते थे, तो बीच-बीच में मंदिरों के दर्शन भी करते थे। जैसे बिहारीजी के दर्शन किए, फिर जुगल घाट से राधावल्लभ जी को निहारा, फिर आगे बढ़ते गए। हर पड़ाव पर ठाकुरजी के दर्शन होते और परिक्रमा का आनंद बढ़ता। यह केवल शारीरिक परिक्रमा नहीं, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक अनुभव है।”

गैलादास: “गुरुजी, परिक्रमा का यही रहस्य है?”

गुरुजी: “हाँ बेटा, परिक्रमा का मतलब सिर्फ पैरों से चलना नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भगवान की भक्ति में समर्पित करना है। पर अब देखो, लोग मूंगफली खाते हुए, आपस में बातें करते हुए परिक्रमा करते हैं। कोई भावना नहीं, कोई शांति नहीं। भक्ति अब दिखावे की हो गई है। और तो और, अब रात को परिक्रमा करने का चलन शुरू हो गया है। क्या ये सही है?”

गैलादास: “गुरुजी, तो रात में परिक्रमा नहीं करनी चाहिए?”

गुरुजी: “नहीं! शास्त्रों में कहाँ लिखा है कि रात में परिक्रमा करो? हरिभक्ति विलास में स्पष्ट है कि जब ठाकुरजी विश्राम कर रहे हों, तब परिक्रमा भी नहीं करनी चाहिए। रात के समय तो यमुना जी भी विश्राम में रहती हैं। पेड़-पौधे, तुलसी माता, और यहाँ तक कि संत भी शांत रहते हैं या भजन में लीन होते हैं। और तुम रात में हो-हल्ला करते हुए परिक्रमा करोगे? ये तो अपराध है।”

गैलादास: “गुरुजी, आप सही कह रहे हैं। पर आजकल तो दण्डौती परिक्रमा भी बड़े धूमधाम से होती है। क्या ये सही है?”

गुरुजी: “बिलकुल नहीं। दण्डौती परिक्रमा का भी विधान है। लेकिन लोग प्रदर्शन के लिए गद्दा बिछाकर परिक्रमा करते हैं। महिलाएं, जिन्हें दंडवत प्रणाम का भी निर्देश नहीं है, वो भी इसमें शामिल हो रही हैं। ये भक्ति नहीं, बस दिखावा है।”

गैलादास: “गुरुजी, ये सब बातें छोटी लगती हैं, लेकिन कितनी गहरी हैं। अब समझ में आ रहा है कि भक्ति के इन नियमों का पालन कितना महत्वपूर्ण है।”

गुरुजी: “बिलकुल बेटा। ये छोटे-छोटे नियम भक्ति की मूल भावना से जुड़े हुए हैं। तुमने अब परिक्रमा का रहस्य समझ लिया है, तो आगे इसका ध्यान रखना।”

गैलादास: “जी गुरुजी, अब मैं भक्ति के इन रहस्यों को समझने की कोशिश करूंगा।”

गुरुजी: “बहुत अच्छा। अब मुझे भजन करने दो, और तुम भी अपने नियम में लगो।”

गैलादास: “जी गुरुजी। परनाम।”

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