यहाँ श्रीमद्भगवद्गीता के 10 महत्वपूर्ण श्लोक हिंदी अनुवाद सहित दिए गए हैं:
- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(अध्याय 2, श्लोक 47)
अनुवाद: तुम्हारा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में नहीं। अतः कर्मफल की इच्छा से प्रेरित होकर कर्म मत करो, और न ही कर्म न करने में तुम्हारी आसक्ति हो। - योग: कर्मसु कौशलम्॥
(अध्याय 2, श्लोक 50)
अनुवाद: योग का अर्थ है कर्मों में कौशल। (अर्थात्, जो व्यक्ति कर्म को ईश्वर को समर्पित करके करता है, वह योगी कहलाता है।) - सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥
(अध्याय 2, श्लोक 38)
अनुवाद: सुख-दुःख, लाभ-हानि, और जीत-हार को समान समझकर युद्ध के लिए तैयार हो जाओ, इससे तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा। - वसांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
अन्यानि संयाति नवानि देही॥
(अध्याय 2, श्लोक 22)
अनुवाद: जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नए शरीर को प्राप्त करता है। - ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
(अध्याय 2, श्लोक 62)
अनुवाद: विषयों का चिंतन करते रहने से उनमें आसक्ति उत्पन्न होती है, आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है, और कामना से क्रोध उत्पन्न होता है। - असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय॥
(उपनिषद्)
अनुवाद: असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। - तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन:॥
(अध्याय 4, श्लोक 34)
अनुवाद: उस ज्ञान को जानने के लिए ज्ञानियों के पास जाओ, विनम्र होकर प्रश्न करो, और उनकी सेवा करो। वे तुम्हें सत्य का ज्ञान देंगे। - अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥
(अध्याय 9, श्लोक 22)
अनुवाद: जो भक्त अनन्य भाव से मेरा स्मरण करते हैं और मुझमें लगे रहते हैं, उनके योगक्षेम (अर्थात्, उनकी आवश्यकता और सुरक्षा) का भार मैं स्वयं उठाता हूँ। - परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
(अध्याय 4, श्लोक 8)
अनुवाद: साधुओं की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में अवतार लेता हूँ। - सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
(अध्याय 18, श्लोक 66)
अनुवाद: सभी धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, चिंता मत करो।
ये श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान, भक्ति, और कर्मयोग के सिद्धांतों को स्पष्ट करते हैं और जीवन में एक सच्चे मार्गदर्शन का कार्य करते हैं।
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