श्री नाभादास जी का वास्तविक स्वरूप (काव्यात्मक शैली में)
ब्रह्मा ने जब हरण किया था, व्रज के ग्वाल-गाय,
श्रीकृष्ण ने फिर खेल रचा, दिया सबको नया उपाय।
योगमाया से की सृष्टि, वही ग्वाल और गायें,
व्रजवासियों को कुछ भी न लगा, प्रभु की माया छाए।
ब्रह्मा जब हुए लज्जित, श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी,
तब प्रभु ने उन्हें वरदान, दिया एक कथा ठानी।
“कलियुग में नेत्रहीन हो, जन्म लोगे इस धरती पर,
महात्माओं की कृपा से, दृष्टि पाओगे फिर।”
यह वरदान था ब्रह्मा को, जो नाभादास बने,
दिव्य दृष्टि पाकर, भक्तिमार्ग पर आगे चल पड़े।
भक्तों के चरित्र पुराण में जो मिले नहीं,
उनके गुणों को बताने, नाभादास जी ने ली कलम थमी।
भक्तमाल रचा, किया भेद का नाश,
शैव-वैष्णव एक हों, यही उनका था प्रयास।
संत सेवा, व्रत, उत्सव की निष्ठा को फिर से जगाया,
भक्त सेवा में त्रुटि न हो, ये संदेश सबको बताया।
यह ग्रंथ नहीं केवल शब्दों का मेल,
यह तो संतों की महिमा का अमर खेल।
भक्तों के चरित्रों से भरी है यह माला,
जिसे श्री हरि ने खुद अपने गले में डाला।
भक्तमाल है दिव्य गाथा, संतों का आदर-स्मरण,
यह नाभादास जी की कृपा, है भक्ति का अमरकरण।
साधकों को दिखाया उन्होंने सच्चा मार्ग,
जहाँ संतों के चरणों में है सारा संसार।
इस ग्रंथ की महिमा अनंत, जो भक्तों को पथ दिखाए,
जो प्रेम से इसे पढ़े, उसे हरि आप अपनाए।
श्री नाभादास की वाणी में था संतों का प्रेम गान,
जो भक्ति के मार्ग को बनाए सदा सुगम और महान।
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